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Hori Faag Bhajan : ताला हो तू खोलि हृदय का ताला

टेक  -  ताला हो तू खोल हृदय का ताला शंकर प्रिया शैल की पुत्री सिंह है तेरा मतवाला। सौतन त्यागि मिली शंकर को सुन्दर रूप है विशाला।  अग्नि समान रूप है तेरो, गर्जत है जैसे काला। हाँक सुनत भसम होय निशचर, निकसे मुख से ज्वाला। शक्ति तुही विधात्री तू है, इन्द्रा बनकर जगपाला। चण्डी तुही, तुही महाकाली, बने काल को है काला। तेरो तेज अपार भगवती, सहि न सकत है दगपाला। डरपैं देव तेज तेरे सो, डरे शेष फन वाला। खाडौ हाथ लयो जब तैने, भूमि तलातल जल हाला।  घसकी धरणि तेज तेरे सो, रूप भयंकर विकराला। भूत प्रेत बैताल संग में,  भैरव है तेरा लाला। चौसठ योगिनी संग चले तेरे, पी पी मद का प्याला। डाले तोड़ बहत्तर कोठा, तोड़ देत बज्जर ताला। लौह के तबा फोड़ कर निकसी, ज्योति प्रकाश जरत लाला। दे दे ज्ञान बुद्धि होइ निर्मल, करिदे प्रगट उजियाला। 'प्रभु दयालु' चरण के सेवक, गंगा को ज्यों नाला। लेखक श्री प्रभु दयाल जी मिश्रा, ग्राम सिधावली, बाह आगरा 

Holi Faag : बजरंगी खेल रहे होली बजरंगी

बजरंगी खेल रहे होली बजरंगी रंग धोर दरबार मे डारे हाथ अबीर लयो रोरी राम लखन को तिलक लगा रये सीता के सनमुख कर बरजोरी लखन राम की लाये पिचकारी भक्ति के रस की भेग धोरी पीकर भंग हुआ मतवाला राम चरण से बांधी डोरी

होली फाग : भवानी हो घट के पट खोल भवानी

भवानी हो घट के पट खोल भवानी  ऊँचे शिखर विराजे मईया सोने के सिहासन पे  पंडा करे आरती मईया, भजन करें नित आसान पे  सोइ मईया री, सोइ जननी री राक्षस दल कों हनि महारानी, अब कर रहीं तू मनमानी  भवानी हो घट के पट खोल भवानी  मनोकामना पूरण करनी तू जग की तारण करनी  शुम्भ निशुम्भ हरे जगदम्बा पुत्र पछाड़ दिया सोइ मईया री, सोइ जननी री कौरव दल कों को अनाथ करो है अब बनी पंडन पटरानी  भवानी हो घट के पट खोल भवानी  गिरजा वन की कैलाशी को बहुत ही नाच नचायो है सीता बन की रावण को तूने सर्वनाश करवायो है सोइ मईया री, सोइ जननी री लखिया वन में राजा नल के अब संग लड़ी मर्दानी  भवानी हो घट के पट खोल भवानी 

बृजमें खेलत फाग मुरारी ॥

 बृजमें खेलत फाग मुरारी ॥ ग्वाल बाल लीन्हे रँग भीने, वेणु बजावत न्यारी। आनत ताल मृदंग झाँझ डफ, नाचत दे दे तारी ॥१॥ करि शृंगार सकल बनि आई, घरघरसे बज नारी । सैन दियौ घनश्याम सखनको, पकरौ गोप-कुमारी ॥२॥ रंग-गुलाल बाल लै धाये, बनितन सब रँग डारी । झपटि-झपट पट पकरि सखा सब देत फागकी गारी ॥३॥ कोऊ कहै हार मेरो टूटो. कोड कहै चूनर फारी। हरिबिलास यह फाग अनोखी, लाल हरे हैं सारी ॥४॥

Holi Faag : गुरु चरण कमल बलिहारि रे, मेरे मन की दुविधा टारि रे,

गुरु चरण कमल बलिहारि रे, मेरे मन की दुविधा टारि रे, गुरु चरण कमल बलिहारी रे। भव सागर में नीर अपारा, डूब रहा नहीं मिले किनारा, पल में लिया उबारी रे, गुरु चरण कमल बलिहारि रे, मेरे मन की दुविधा टारि रे, गुरु चरण कमल बलिहारी रे।। काम क्रोध मद लोभ लुटेरे, जनम जनम के बैरी मेरे, सबको दीन्हा मारी रे, गुरु चरण कमल बलिहारि रे, मेरे मन की दुविधा टारि रे, गुरु चरण कमल बलिहारी रे।। भेद भाव सब दूर कराया, पूरण ब्रम्ह एक दर्शाया, घट घट ज्योति निहारी रे, गुरु चरण कमल बलिहारि रे, मेरे मन की दुविधा टारि रे, गुरु चरण कमल बलिहारी रे।। जोग जुगत गुरुदेव बतलाई, ब्रम्हानंद शांति मन आई, मानुष देह सुधारी रे, गुरु चरण कमल बलिहारि रे, मेरे मन की दुविधा टारि रे, गुरु चरण कमल बलिहारी रे।। गुरु चरण कमल बलिहारी रे, मेरे मन की दुविधा टारि रे, गुरु चरण कमल बलिहारी रे।। शिक्षक दिवस सितम्बर को है। उपहार के रूप में आप का अपने शिक्षक का सम्मान करना उचित है। अक्सर सबसे अच्छा उपहार एक हस्त लिखित धन्यवाद नोट होता है , यदि आप चाहें तो थोड़ा पैसा खर्च करना भी ठीक है। आप भी अपने शिक्षक को उपहार भेज सकते हैं। Buy Gift for you...

फाग भजन चौताल : वृज में अति धूम मचायौ

वृज में अति धूम मचायौ बृज में अति धीम मचायो, नन्दजी के लाला || साजि श्रृंगार राधिका ठाढ़ी, नख सिंक सुन्दर भाला । और सखि सब साजि चली संग । जुटि गई जहवां सब ग्वाला, नन्दजी के लाला || जितने बाजा संग लिये हैं, बाजत एकै ताला । हो हो करि होरी सब गावत । लौ लासी लिये वृजबाला, नन्दजी के लाला || तकि तकि घात सखियन पर मारत, भरि भरि रंग जोपाला । लै गुलाल हरि को सखि मारत । मानो हरि हो गयें मतवाला, नन्दजी के लाला || कंचन के पिचके छूटे ज्यों, बरसत मेघ कराला । ग्राम नवतार भीजी तेहि औसर । सब लखि सुर होत निहाला, नन्दजी के लाला || उलारा खेलहि कृष्ण मुरार, विन्दावन होरी ।। करतल ताल सभी कर शोभित, हरि नाचे संग नर-नार, विन्दावन.... गहि बहियां कोई अधर मिलावत, गल चूमत बारम्बार, विन्दावन... श्याम सखे ब्रज की सब नारी, दी तन की दसा बिसार, विन्दावन होरी ॥ (ठाकुर भीम सिंह)

फाग भजन : वर आऐ हैं गौरा तुम्हारे

 वर आऐ हैं गौरा तुम्हारे वर आऐ हैं गौरा तुम्हारे, बड़े सैलानी। भूत पिचास संग लै आये, बोलत बम बम बानी । जेहि देखो तेहि अशुभ भेष धरे ।। तेहि संग न एक निशानौ, बड़े सैलानी । आपु सवार बैल है पर जटा गंग अरू झानी। चन्द्र भाल गले मुंहमाल लसे ।। दोउ कर नागिन लिपटानी, बड़े सैलानी । भाँग धतूर चर लै फाँकत, महिमा जात न जानी। मात पिता पयर लोग सोच वश ।। सुनि गौरी हृदय हरशानी, बड़े सैलानी। गई बरात द्वार के चारे, लखि सब नारी परानी । द्विज भागीरथ शम्भु शम्भु भजु ।। भोला बाबा बड़े वरदानी, बड़े सैलानी। उलारा गिरिजापति खेलै होरी हो, गिरिजापति खेलै होरी हो। भसम अंग सिंर गंग बिराजे, जटा मुकुट लट फेरी हो। बाये अगं जग जन्नी भवानी, नाचै योगिनि घेरी हो। बाधंबर पीताम्बर ओढ़े, शेशनाग लपटोरी हो । चंद्रभाल सोहे कपाल पर, देखि चकित भइ गोरी हो ।। गिरिजापति खेलै होरी हो...... गिरजे सैन दियौ सखियन को, लै गुलाल रंग दौड़ी हो। देखि सरूप शीश भयो नीचे, महाँदेव कहँ हेरी हो । कानन वाके कुन्डल सोहे, हाथ त्रिशूल लियोरी हो। श्रृगीनाद बजाये रिझावत, गंगादास कर जोरी हो ।। गिरिजापति खेलै होरी हो.. (ठाकुर भीम सिंह)

फाग चौताल : वृज मुरली बजावत श्याम

वृज मुरली बजावत श्याम बृज मुरली बजावत श्याम रहा नही जाई ॥ लै लै नाम मुरलि में सब को, मिलो मिला दुनि लाई । सुनि बृजवनिता अपनी महल से । सब चली हैं सो लाज गँवाई, रहा नहीं जाई ।। शिरकी चुनरी कमर पहिरे हैं, कमरकी शिपै ओढ़ाई । अन्जन नैनन बीज लगावत । शिर सेंदुर लेत लगाई, रहा नहीं जाई ॥ कोउ धन रही पियावत आपन, कोउ रहि पलंग बिछाई कोउ जेवनार बनावत भीतर । कोउ बसन बिना उठी धाई, रहा नहीं जाई ॥ कोउ गरिआवन लागी मुरलि को, जिन हम को बौराई । घर में रहा नहीं जात महिपति । हरी की मुरली तो है सुखदाई, रहा नहीं जाई ॥ उलारा खेलहि कृष्ण मुरार, विन्दावन होरी ।। करतल ताल सभी कर शोभित, हरि नाचे संग नर-नार,  विन्दावन होरी गहि बहियां कोई अधर मिलावत, गल चूमत बारम्बार,  विन्दावन होरी श्याम सखे ब्रज की सब नारी, दी तन की दसा बिसार, विन्दावन होरी ॥ (ठाकुर भीम सिंह)

फाग भजन : आयें राम लछन दोउ भाई

आयें राम लछन दोउ भाई बीर अनेक शिव धनुष चढ़ाने को करें उपाई , उठा धनुष नहीं लौट चले सब सिर लटकाई ॥ कठिन कठोर धनुष शकर का || धनु छवत दून होई जाई, राजा जनक अगना । ताल ठोक कर उठा दशानन, सुर मुनि घबड़ाई, धनुआ न हीला तिल भर, राक्न रहा खिसिआई। राजा जनक मन सोच भयौ है ॥ दोउ कुवर खड़े मुसकाई, राजा जनक अगना । उठै राम तब सकल सभा के मन हरपाई गुर् अज्ञा सिर धार, धनुश को हाथ लगाई। देखत ही शर चाप चढायौ । धनु तोरि नौखंड बनाई, राजा जनक अगंना । टूट पिनाक शब्द भारी, रवि स्थ न ठहराई भूप सबै खिखिआये गये मन रोश बढ़ाई ॥ ठाकुर भिम हिये हुलसि हुलसि कहि ॥ सब सुर मुनि के मन भाई, राजा जनक अगंना ॥ उलारा धनु तोड़ दियो, रामचन्द भगवाना । भूप अनेक पधारे, सीता स्वयमबर में, खुद की करै बखाना, धनु छूते ही, लौठ चलै खिसियाना, हाये लौठ चलै खिसियाना, हाये लौठ चलै खिसियाना (2), धनु तोड़ दियो रामचन्द भगवाना । फिर रामचन्द मुस्काये, गुर अन्जा ले धनुष को हाथ लगाये, शिव धनुआ को तोड़ नौ खन्ड बनाये, सब बीरन का पल में मान गिराये। हाये पल में मान गिराये (2), धनु तोड़ दियो रामचन्द भगवाना । (ठाकुर भीम सिंह)

फाग भजन : दुर्योधन का द्रोपती को भवन से लाने की कहना

लाबै हो कोउ पकरि द्रोपती लाबै जैसे तैसें दाव लगौ आजु ईश्वर को है गयौ नेहा । भरि लेउ आँखे वादिन के लजबन्ती कैसी बेहा ।।  सो०- कही अन्ध के अंध भवन में मोइ जेठु के बिरु बनायें हो। कोऊ० जब ही नाम लयौ दोपति को भीम सैनि तमके नैना। मंगाई लेउ दोपति कौ काम सभा में कछु हैना।। सो०- साथ बुरो भैया दुनियों में तासों आर-पार है जाबै हो। कोऊ०  मंगलवार पड़ी परिवा जानें अम्बर की पहनी साड़ी। चाहति बॉट पन्डवनि की तब द्रोव सुता घर में ठाड़ी। सो०- परौ नजरि दूशासन बिरही अब चलौ भवने में आबै हो। कोऊ०  बिना काल कोऊ मरत न देखौ बेशक विषिए ले खाइकें। काटे कोई दिना दुख के ताहि बूझि लेऊ भैया जाइकें ।। सो०- जो कछु बीति रही पन्डनि पर ना मुख से रामु कहाबै हो। कोऊ०. तैसे ही सौ और तैरो ही नौ या बेईमान अधरमी को। मैंनि भनेजी कहा पर नर कामी पुरुष कुकरमी को ।। सो०- करनी काल करम गति मिलि गई कहा कविता अजब बनावै हो। कोऊ०)

फाग गीत भजन : द्रोपती पर भगवान की कृपा

 बनवारी हो जब टेर सुनों बनवारी निरखे बैठि झरो का ते फिरि तिनि ते कहा अंधेरी है।  स्वांश-स्वांश में वासु करें भगवान बसें कहा देरी है।।  सो०- दौरि द्वारिका से सुधि लीनी तब बढी शीशते सारी हो  बनवारी हो जब टेर सुनों बनवारी पलक बन्द द्रोपति के है गए लागी डोरि गुसैयाँ ते।  चकित सभा जब चीर बढो एक तगा न उधरौ बंयाँ ते ।। सो०- जाकी लाज विधाता राखै कहुँ होइ न ताकी ख्वारी हो  बनवारी हो जब टेर सुनों बनवारी खेचिर पटुढेर करै फिरि तौर ना शौचै अभिमानी।  पर वस भई थकी दोऊ बैयों मुख सेह नाहि कठै बानी।। सो०- खुद दुर्योधन की मति मारी जो नैननि रहौ निहारी हो  बनवारी हो जब टेर सुनों बनवारी दुश्मन मरै न दुश्मन कौसें कोंसें पड़ा कसैया के। होगी वहे जो प्रभू रचि राखा सिग की डोर कन्हैया के ।। सो०- सदाँ पछ्याँ ना पुरबैया भई अभिमानी की ख्वारी हो  बनवारी हो जब टेर सुनों बनवारी दुश्मन हारि गयौ दूशासन अपुते बठि गयौ धरनी। निज करनी कौ जगु फलु पावै पापी तरै न बैतरनी।। सो०- अजब द्वारिका कहाँ हथनापुर अब भई न नारिं उधारी हो।  बनवारी हो जब टेर सुनों बनवारी

होली फाग : भए तो शान्तनु नृप मगन भऐ है।

महाभारत आदि पर्व : होली फाग गीत  टेक - भए तो शान्तनु नृप मगन भऐ है। १ -    सुरति  देखि गंगा की मन में नूप हरसाते है।         शील सुभाव सेवा सदगुण से अति आन्द मनाते है।  तो० - रहते साथ साथ गंगा के अब का दिन बीत गए हैं।  २- जैसे ही पुत्र होय गंगा के गंगा ने जल में बनाए है।      इसी तरह गंगा जी ने सात पुत्र उपजाऐ है ।  तो०- ऐसो हाल देखो राजाने अब मन में सोच छऐ है।  ३- पुत्र आठमा भयो गंगा के गंगा ने खुशी मनाई है।      ले के पुत्र चलि दई गंगा राजे उदाशी छाई है। तो०- शिबई पुत्र मारि दऐ तुम्हें अब क्रोधित भूप कहें ।।  ४- गंगा ने कहो पुत्र लेऊ राजा तुहें छोड़ि हम जाय रही।        शर्ति हमारी पूरी न कीनी तुम्हें पुत्र सीपय रही  तो०- आठवा पुत्र देवब्रत नामों अब मुकट ने गाए कहें है ।

🌷🌷 सोहर गीत 🌷🌷

  🌷🌷 सोहर गीत 🌷🌷 धन्य धन्य राज्य अयोध्या ,की धन्य राजा दशरथ रे ललना रे - धन्य रे कौशिल्या रानी के कोखीं की , रामजी जनम लेला रे । किनिका के भेलैन रामचंद्र, की किनिका के लछुमन रे ललना रे - किनिका के भेलैन भरत सत्रुघ्न चारु घर सोहर रे कौशिल्या के भेलैन रामचंद्र सुमिन्त्रा के लछुमन रे ललना रे - केकई के भेलैन भरत सत्रुघ्न चारु घर सोहर रे आबथु विप्र से पंडित , औरो पंडित सब रे ललना रे - गुणी देथु बौआ के राशि की कोने तिथि जन्म भेल रे एक हाथ लेलनि विप्र पोथी की , दोसरे मुरुछि खसु रे ललना रे - बारहे बरष राम होयत, जयता निकुंज वन रे एतबा वचन राजा सुनलनि, सुनहु ने पाओल रे ललना रे - गोर मुंख ओढ़ल चदरिया, की सुतल गज ऊपर रे सोइरी में बोले कौशिल्या रानी , की सुनु राजा दशरथ रे ललना रे - कतहु क राम मोरा जिवथु , हमरे कहाबथु रे।

विदाई गीत l उठो रे बन्नी हुआ सवेरा बन्ना ने किया इशारा की गाड़ी आ गई है l

उठो रे बन्नी हुआ सवेरा बन्ना ने किया इशारा की गाड़ी आ गई है की गाड़ी आ गई है उठो रे बन्नी हुआ सवेरा बन्ना ने किया इशारा की गाड़ी आ गई है की गाड़ी आ  गई है मम्मी से कह दो करें विदाई पापा से लेलो दुहाई  की गाड़ी आ  गई है उठो रे बन्नी हुआ सवेरा बन्ना ने किया इशारा की गाड़ी आ गई है की गाड़ी आ गई है चाची  से कह दो करें विदाई चाचा से लेलो दुहाई  की गाड़ी आ गई है उठो रे बन्नी हुआ सवेरा बन्ना ने किया इशारा की गाड़ी आ गई है की गाड़ी आ गई है भाभी से कह दो करें विदाई भइय्या से लेलो दुहाई  की गाड़ी आ गई है उठो रे बन्नी हुआ सवेरा बन्ना ने किया इशारा की गाड़ी आ गई है की गाड़ी आ गई है

रातें बरस गओ पानी, की काय राजा तुमने न जानी

रातें बरस गओ पानी, की काय राजा तुमने न जानी  अटा जो भींजे अटारी भींजि -२  भींजि है अरे धुतिया पुरानी, की काय राजा तुमने न जानी रातें बरस गओ पानी, की काय राजा तुमने न जानी  बाग जो भींजे बग़ीचा भी भींजे-२  मालन अरे मालन फिरे उतरनी, की काय राजा तुमने न जानी रातें बरस गओ पानी, की काय राजा तुमने न जानी  कुआँ भी भर गए तालाब सोई भर गए-२  कहारन अरे कहारन फिर बौरानी, की काय राजा तुमने न जानी रातें बरस गओ पानी, की काय राजा तुमने न जानी  गैयाँ भींजि बछिया भींजि-२  नदियों में अरे नदियों में बढ़ गाओ पानी, की काय राजा तुमने न जानी रातें बरस गओ पानी, की काय राजा तुमने न जानी  नदिये भर गयी नरवा भर गए -२  गेलों की अरे गेलों की बन गई सानी, की काय राजा तुमने न जानी रातें बरस गओ पानी, की काय राजा तुमने न जानी  रातें बरस गओ पानी, की काय राजा तुमने न जानी 

देसी भजन : बोल कान्हा बोल गलत काम कैसे हो गया ?

बोल कान्हा बोल गलत काम कैसे हो गया, बिना शादी के तू राधे श्याम कैसे हो गया । सत् भांमा रुक्मण के जैसी लूगाई, राधे के साथ कैसे जोड़ी बनाई, बोल कान्हा बोल.... बोल कान्हा बोल तू नादान कैसे हो गया, बिना शादी के तू राधे श्याम कैसे हो गया, ब्याह जिसे लाया वो गूहाई तेरी रानी, बिना ब्याहे राधा कहाए महारानी, बोल कान्हा बोल.... बोल कान्हा बोल ये सम्मान कैसे हो गया, बिना शादी के तू राधे श्याम कैसे हो गया, राणी-पटराणी सारी हाजिरी बजावै, राधे महारानी तुझपे रोब्ब जमावै, बोल कान्हा राधे का.... बोल कान्हा राधे का गुलाम कैसे हो गया, बिना शादी के तू राधे श्याम कैसे हो गया, तस्वीर बिवियों की कोने में पड़ी है, जितने मंदिर राधे बगल में खड़ी है, बोल कान्हा बोल.... बोल कान्हा बोल ये विधान कैसे हो गया, बिना शादी के तू राधे श्याम कैसे हो गया, राणी-महारानी का लेंता नहीं नाम है, डंके की चोट कहें राधा मेरी जान है, फिर भी भक्त तेरा.... फिर भी भक्त तेरा यें जहां कैसे हो गया, बिना शादी के तू राधे श्याम कैसे हो गया, जिसने भी प्यार किया वो ही बदनाम है, प्रेमिका के साथ तेरी चार गुनी शान है, झूठा सारा वेद.... झूठा सारा ...

ऐंगर बैठ जाओ

ऐंगर (पास) बैठ जाओ कछु कानै (कहना है) काम जनम भर रानै (रहेगा) इत (यहां) की बात इतईं (यही) रै (रह) जैहे (जायेगी) कैबे (कहने को) खां रै (रह) जैहे (जायेगी) ऐसे हते (थे) फ़लाने (वे) ऐँगर बैठ लेव कछु कानै काम जनम भर रानै सबखाँ लागो रात जिअत भर जौ नईँ कबहुँ बढ़ानै करिओ काम घरी भर रै केँ बिगर कछु नईँ जानै ई धन्धन के बीच ईसुरी करत करत मर जानेँ फाग गीत में है. शब्दों के अर्थ भी दिये हैं. पर आशय है कि ऐ मित्र बैठो. कुछ कहना है. काम तो जन्म भर रहेगा | हां की बात यहीं रह जायेगी. फिर यह बात कहने को शेष रहेगी कि फलां ऐसे थे |

फाग गीत चौताल - यही अवसर लगहु सहाय महेश वारे !!

यही अवसर लगहु सहाय महेश वारे !! नहिं कुछ ज्ञान वुद्धि हमरे है नहि सत संग सहारे ! पिंगल कोष भाग्य नहिं जानत प्रभु एक महेश अधारे !! महेश !! १ नहिं हरि भजन पुकारि कहौं यह जानत है संसारे ! सब तजि आस करोँ तुम्हरी प्रभु तुम दीनन के हित कारे !! महेश !!२ तुम्हरे जोर फॉग हम गावत राखहु लाज हमारे ! नहिं तो हंसी होय यहि अवसर यह हसन योग प्रण धारे !! महेश !!३ हमरो पति तुम हाथ गजानन नहिं बूड़त हौं मज धारे !! सत्य देव द्विज आस करत अस नाम सुमंगल कारे !! महेश !!४

फाग गीत चौताल - सुमिरों शंकर शैलानी बड़े वर दानी !!

सुमिरों शंकर शैलानी बड़े वर दानी !! डूडा बैल ताहि पर आसन साथे सती  भवानी ! मुंड मॉल गले माहि विराजत नागिन उर  में लपटानी !!बड़े !!१  भाल में भस्म चन्द्रमा शोभित शीश गंग लहरानी ! गेरू रंग अंग पटराजित जाके तीनों नयन जगजानी !!बड़े !!२  चूर धतूर गरल लै घोटत खात भांग शिवदानी ! डमरू गाल बजावत आवत गौरा लखि रूप लोभानी !!बड़े !!३  सव देवन में देव बड़े हैं महादेव सुखदानी ! सिव प्रसाद चरण रज चाहत सुनि लीजै गरीब की वानी !!बड़े !!४

फाग गीत चौताल - सखी ये दोऊ राज दुलारे अवध पति प्यारे !!

सखी ये दोऊ राज दुलारे अवध पति प्यारे !! जब रघु राज जनक पुर आये खुलि गई महल किवारे ! झुकि झुकि नारि झरोखन झाकति ,चितवन छवि पलक निसारे !!अवध !!१  राम लखन गलियन में डोलै बहु छवि कला पसारे ! क्रीट मुकुट मकरा कृत कुन्डल ,मुख कोटि चन्द्र उजियारे !!अवध !!२  चंचल चपल अलख छवि छाजै वाके नयन जुझारे ! कैसे वचिहैं नारि मिथिला की ,चितवनिया कतल करि डारे !!अवध !!३  फिर यहि गलियन देखो सखी तनी छवि भरिनयन निसारे ! बदरीजन दशरथ जी के लालन वे तो ले गये प्राण हमारे !!अवध !!४

फाग गीत चौताल - मोरी भरि दे गगरिया हो श्याम कहति वृज नारी !!

मोरी भरि दे गगरिया हो श्याम कहति वृज नारी !! हमसे चढ़ा जात नहिं मोहन यमुना ऊंची करारी ! पाव धरत हमरो जिय लरजत ,दूजे पाव में पायल भारी !!कहति !!१  गागर भरत करत रस बातें मद नर ती अनु हारी ! भरि भरि घयल धरत सिर ऊपर ,दूजे यौवन मलत विहारी !!कहति !!२  तब सकुचाय कहति वृज वनिता प्रभु जी की ओर निहारी ! हमरे तुम्हरे कौन परस पर ,काहे रोको कान्हा डगर हमारी !!कहति !!३  तुम तो ढोता नन्द बबा के हम वृषा भान दुलारी ! सूर श्याम से कहति ग्वालनी ,कान्हा तुम जीतो हम हारी !!कहति !!४

फाग गीत चौताल - गोरी राधे कै नयन रतनारे कजर सोहै कारे !!

गोरी राधे कै नयन रतनारे कजर सोहै कारे !!  एक मगन हम माँगी ला गोरिया उपजै अंग तुम्हारे ! हम तो मांगी दूनो छतिकै जोवनवा,दिन चारी कै दै देव उधारे !!कजर !!१   अच्छा मगन मागेव मन मोहन राखो मान तुम्हारे !   यह दोनों योवन मोरे हरि कै खेलौना ,यह तो तुमहू से अधिक पियारे !!कजर !!२  एक फूल फूलै आधी रतिया फूल रहै कचनारे ! लटका जोवन कछु काम न आवे ,उनका कोऊ नहि पूछै उधारे !!कजर !!३  तुम तो ढोता नन्द बबा के हम वृषा भान दुलारी ! दृग हरि चरन सरन सत गुरु के ,उनके वेनी सोहै माथ लिलारे !!कजर !!४

फाग गीत चौताल - धनि धनि हो सिया राउर भाग हमारी राम वर पाये !!

धनि धनि हो सिया राउर भाग हमारी राम वर पाये !! लिखी चिठिया नारद मुनि भेजे विसवामित्र पठाये ! साजि वराति चले राजा दशरथ ,सब अवध  पुरी से चलि आये !!राम!!१  आय वरात जनक पुर उतरी जाजिम झारि विछाये ! हरषि उठे दशरथ कुल नन्दन ,जह मालिन मौर बनाये !!राम !!२  वृन्दावन से वांस मंगाये आँगन माड़व छवाये ! सुवरन कलश धरा वेदी पर ,जँह माणिक दीप जलाये !!राम !!३  भये विवाह देव सब हरषे सखिये मंगल गाये ! तुलसीदास बलि आस चरन के जहँ दशरथ दर्व लुटाये !!राम !!४

फाग गीत चौताल - हमरे उर ऊपर हाथ धरो जिनि प्यारे !!

हमरे उर ऊपर हाथ धरो जिनि प्यारे !! काल्हि करार कियो सेजिया पर झुलनी वनी सकारे ! सो विसराय दिहो तुम बालम,अब नाहक हाथ पसारे !!धरो !!१  कंठ हार हुवेल विजायठ भूषन धरो लिलारे ! यह गहना हमका नहिं भावत इत से उठि जाव दुवारे !धरो !!२  यह जोवना हम बड़े जतन से पाला प्राण पियारे ! सो तुम्हें मलत दरद नहिं आवत ,मोरे कोमल अंग विगारे !धरो !!३ फरक रहो गले वाह न डारो न छुवो वदन हमारे ! द्विज छोटकुन झुलनी विन बालम ,मुख चूमे कौन प्रकारे !धरो !!४

फाग गीत चौताल - जल भरन देव वृज राज साझ नक चानी !!

जल भरन देव वृज राज साझ नक चानी !! ननद गई अपने बालम घर सास गई मेहमानी ! कन्त हमार सार घर राजित ,देवरा जहाँ गाय वियानी !!साझ !!१ आज अकेल हमें रहना है न देवरानि जेठानी ! रान परोसिन रैन न जागति ,हम तरुणी नारि अकुलानी !!साझ !!२  यह तर नीर भरव हम मोहन न कुछ सुनव कहानी ! द्वार मझार केंवार खुले डर ,घर सुनै छाड़ी पयानी !!साझ !!३  परम चतुर वृज वाम श्याम के घुघट में वतलानी ! द्विज छोटकुन लखि के मन मोहन हँसि कहति भली हम जानी !!साझ !!४

फाग गीत चौताल - फागुन बीत जात नहिं आये नन्द लाला !

फागुन  बीत जात नहिं आये नन्द लाला ! प्रेम बढ़ाय फसाय मिलो मन विहँसि मोहनी डाला !! नहिं विसरत वह सुरति संवलिया ,हरकत ऊर वन माला !!नहिं !!१ मिलि हो वेग चलत को वेरिया कहि गये वैन रसाला ! तलिफ तलिफ जिय जात गयो ,परी वेदरदी से पाला !!नहिं !!२  चहुँ दिशि घूम धाम होरी की सुनत लगत जस भाला ! अब कइसे जिय राखे दइया ,विरहिन वृज की वाला !!नहिं !!३  बनत न और उपाय हाय अब पीजै विष की प्याला ! रंगपाल सुधि लेत न अजहुँ ,निठुर मुरलिया वाला !!नहिं !!४

फाग गीत चौताल -लै गै जनक लली का चोराई दशानन आई !

लै गै जनक लली का चोराई दशानन आई !! मृग मारन काहे तुम गयो वन राम लखन दोनों भाई ! भवन अकेलि रही सिया सुन्दरि ,धरि रूप  यती गोहराई !!दशानन !!१  जनक लली लै भीख चली हैं रेखि नाघि जब आई ! हाथ पकरि लंका पति राजा हमका लै जात चोराई !!दशानन !! २  करत विलाप जगत की जननी ,रावण के संग जाई ! हाथ उठाय लखन के पुकारत ,देवर हमका लेहु छोड़ाई  !!दशानन !! ३  देखी सैन भालु कपि केरी दोनों चीर गिराई ! तुलसी दास बलि आस चरन के ,हमका लै जात चोराई  !!दशानन !!४