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फाग भजन : आयें राम लछन दोउ भाई


आयें राम लछन दोउ भाई

बीर अनेक शिव धनुष चढ़ाने को करें उपाई ,

उठा धनुष नहीं लौट चले सब सिर लटकाई ॥

कठिन कठोर धनुष शकर का ||


धनु छवत दून होई जाई, राजा जनक अगना ।

ताल ठोक कर उठा दशानन, सुर मुनि घबड़ाई,

धनुआ न हीला तिल भर, राक्न रहा खिसिआई।

राजा जनक मन सोच भयौ है ॥


दोउ कुवर खड़े मुसकाई, राजा जनक अगना ।

उठै राम तब सकल सभा के मन हरपाई

गुर् अज्ञा सिर धार, धनुश को हाथ लगाई।

देखत ही शर चाप चढायौ ।


धनु तोरि नौखंड बनाई, राजा जनक अगंना ।

टूट पिनाक शब्द भारी, रवि स्थ न ठहराई

भूप सबै खिखिआये गये मन रोश बढ़ाई ॥

ठाकुर भिम हिये हुलसि हुलसि कहि ॥

सब सुर मुनि के मन भाई, राजा जनक अगंना ॥


उलारा

धनु तोड़ दियो, रामचन्द भगवाना ।

भूप अनेक पधारे, सीता स्वयमबर में,

खुद की करै बखाना, धनु छूते ही,

लौठ चलै खिसियाना, हाये लौठ चलै खिसियाना,

हाये लौठ चलै खिसियाना (2), धनु तोड़ दियो रामचन्द भगवाना ।


फिर रामचन्द मुस्काये, गुर अन्जा ले

धनुष को हाथ लगाये, शिव धनुआ को

तोड़ नौ खन्ड बनाये, सब बीरन का

पल में मान गिराये।

हाये पल में मान गिराये (2), धनु तोड़ दियो रामचन्द भगवाना ।

(ठाकुर भीम सिंह)


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