मोरी भरि दे गगरिया हो श्याम कहति वृज नारी !!
हमसे चढ़ा जात नहिं मोहन यमुना ऊंची करारी !
पाव धरत हमरो जिय लरजत ,दूजे पाव में पायल भारी !!कहति !!१
गागर भरत करत रस बातें मद नर ती अनु हारी !
भरि भरि घयल धरत सिर ऊपर ,दूजे यौवन मलत विहारी !!कहति !!२
तब सकुचाय कहति वृज वनिता प्रभु जी की ओर निहारी !
हमरे तुम्हरे कौन परस पर ,काहे रोको कान्हा डगर हमारी !!कहति !!३
तुम तो ढोता नन्द बबा के हम वृषा भान दुलारी !
सूर श्याम से कहति ग्वालनी ,कान्हा तुम जीतो हम हारी !!कहति !!४