लाज मोरी राखौ हो महाराज ॥ मध्य-सभा में बैठि द्रौपदी, दुर्योधन मुसक्यात । अधम चीर मोरा खीँचे दुशासन, नग्न होत मेरो गात भीषम-द्रोण-कर्ण सब बैठे, कहि न सकै कोई बात । खड़ी द्रौपदी इत उत देखें, हेरत प्रभु की बाट ? कहै द्रौपदी सुनौ भीमजी, करना है यहु काज । कोटिन कुंजर का बल तुम्हरे, ऐ हे कौने काज ? सूरदास, प्रभु तुम्हरे दरश को, हरि-चरण चित्त लाग। टेर द्रौपदी की सुनि पायौ, फाँदि परे ब्रजराज लाज मोरी राखौ हो महाराज ॥ ------------ Subscribe our youtube channel
भदावर के लोकगीतों में चंबल की माटी की सौंधी-सौंधी गंध महकती है। जन मानस ने इन गीतों को गाते-गाते विविध रूप प्रदान किए हैं। लाखों कंठों ने गा-गा कर और लाखों लोगों ने मुग्ध होकर सुन-सुन कर इन गीतों को परम शक्तिशाली और हृदयस्पर्शी बना दिया है। लोकगीतों में धरती गाती है, पर्वत गाते हैं, नदियां गाती हैं, फसलें गाती हैं होली के भजन लिरिक्स, होली के रसिया लिरिक्स, होली गीत लिरिक्स इन हिंदी, होली लोक गीत इन हिंदी लिरिक्स, होली गीत लिरिक्स, लिरिक्स होली के भजन, लिरिक्स होली भजन, होली भजन डायरी,