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महाभारत फाग - कुंती कर्ण संवाद | होली गीत लिरिक्स

आई हो, जिह पास कर्ण के आई। 


कुंती को लख गिरो चरण में, आसन पर बिठाई हैं।  

आना हुआ कहो माँ कैसे, कर्ण ने गिराह सुनाई हैं। 

सोई भईया रे ! तन मन में ये उदासी कैसी। 

दीजो भेद बताई हो, जिह पास कर्ण के आई। 


आई हो, जिह पास कर्ण के आई। 


कुंती तबही कर्ण से बोली कहने में सकुचाती हूँ

अब तक तेरा भेद छुपाया बेटा तुझे बतलाती हूँ 

सोई भईया रे ! नौ महीना तोहे रखो गर्भ में 

ओ बेटा बलदाई हो, जिह पास कर्ण के आई। 


आई हो, जिह पास कर्ण के आई। 


मैं तेरी मात पुत्र तू मेरा, मैंने यह अपराध कियो।

जनमत बनी अभागिन बेटा तेरे संग में दगा कियो।

सोई भईया रे ! लोकलाज के भय से मैंने।

अनरथ लियो कमाई हो, जिह पास कर्ण के आई। 


आई हो, जिह पास कर्ण के आई। 


कुंत भोज सुता पिता को, मैं बेटा थी अति प्यारी। 

करि तपस्या बालापन में, जब बेटा मैं थी कुँवारी। 

सोई भईया रे ! विश्वामित्र मुनि ने हमको 

दिए मंत्र बताई हो, जिह पास कर्ण के आई। 


आई हो, जिह पास कर्ण के आई। 


आजमाए जब मंत्र लाला तो, गजब भओ अति भारी है। 

सूर्य देव भए प्रकट नजर जब मेरे ऊपर डारि है। 

सोई भईया रे ! नौ महीना तक हमने प्यारे।  

लियो भेद छुपाई हो, जिह पास कर्ण के आई। 


आई हो, जिह पास कर्ण के आई। 


नौ महीना के बाद कुंवर, जैसे ही तुमने जनम लियो।  

कर बक्सा में बंद लाला तोय गंगा बीच बहाई दियो।  

सोई भईया रे ! कर कर याद पुरानी बेटा। 

अब रही नीर बहाई हो, जिह पास कर्ण के आई। 


आई हो, जिह पास कर्ण के आई। 


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