अब तौ रामध्वजा फहरानी॥
चमकै ढाल फरहरी तेगा, गर्द लागि असमानी ।
लक्ष्मण बीर बालि सुत अंगद, हनोमान अगवानी ॥९॥
कहै मदोदरि सुनु पिय रावण, त्रिभुवन पति से ठानी ।
जेहि समुद्र का मान करत रह्यो, तामें सिल उतरानी ॥२॥
आज पवन अँगना ना बुहारें, मेघ भरै ना पानी ।
लछिमी सरासर धान न कूटे, कहै मदोदरि रानी ॥३॥
विनती करो जाय पिय उनकी, चूक परी अति भारी ।
तुलसीदास भजौ भगवाने, करौ न अब अभिमानी ॥५॥
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