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फाग सुमरनि माता सूरसती सिर नाई, बसो हिये आई। दोऊ कर जोड़ विनय करूँ तुमसे, बसो कंठ पर आई। गौरी के पुत्र गणेश को सुमिरो। भूले अक्षर देव बताई, बसो हिये आई। पारब्रह्म ब्रह्मा को सुमिरो, सृष्टि दीन्ह बनाई। सुमिरन करूँ धरती माता का हो। माता दुर्गा को शीश नवाई, बसो हिये आई। नृप दशरथ का सुमिरन करके, सुमिरो राम की माँई, राम लखन सीया सुमिरन करके। हनुमान को लेव मनाई,बसो हिये आई। महादेव देवन के देवा उनको शीश नवाई। सब देवन का सुमिरन करके। ‘हिम्मत’ कहते सिर नाई, बसो हिये आई। उलारा स्वर दीजे आए, वीणा वादिनी माता। रचियेता स्वर्गीय हिम्मत राम शर्मा, फ़िजी