टेक : ऐसी कर्मन की गति न्यारी
कर्म वश केकई ने माँगि लए वरदान
कर्म के प्रताप राजा दशरथ छोडे प्राण
कर्म फल देने गए मिटि जात सम्मान
कर्म के प्रताप राजा राम गए बनवास
सीता को हरन भयौ भूल गए भूख-प्यास
कर्म के प्रताप राजा रावण कौ भयो नाश
सोने की लंक पंजारी, ऐसी कर्मन की गति न्यारी।
कर्म प्रताप राजा हरिश्चन्द्र दियौ दान
राजा सुत रानी तीनो काशी कियौ प्रस्थान
काशी में बिके है तीनो भूलि गए कुल-खान
कर्म के प्रताप जाइ मंगी के भरौ है नीर
एक जे टका के पीछे फाड़ लियौ आधौ चीर
कौनु है मिटइया ऐसे कर्म के लिखै कौ वीर
भई सब तराँ ख्वारी, ऐसी कर्मन की गति न्यारी।
कर्म के प्रताप पांडु पुत्र हारे धन-धाम
द्रौपदी कौ चीर खींचौ बहुत भए बदनाम
बारह बर्ष वन रहे भीख माँगि गाम-गाम
कर्म के प्रताप राजा नल पै विपति आई
माँगे नाइ भीख मिली भूलि गरे ठकुराई
तेली की हूँ पारि हॉकी कीरति जहान गाई
परि गयौ कर्म पिछारी, ऐसी कर्मन की गति न्यारी।
कर्म की डोरि फैली बाँध गयौ संसार
कर्म की नीयति ताहि भोगि रहे नर नारि
सुख दुख फल सोतौ कर्म के हू अनुसार
जैसे जाकै कर्म तैसो फल ताने लियौ पाई
कर्म को त्यागे काहू काम कौ रहैगो नाई
गाँव है कमौनी खड़े "प्रहलाद" रहे गाई
कर्म टरत नहीं टारि, ऐसी कर्मन की गति न्यारी।
-Ex Capt. Prahlad Yadav