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Holi Faag : गुरु चरण कमल बलिहारि रे, मेरे मन की दुविधा टारि रे,

गुरु चरण कमल बलिहारि रे, मेरे मन की दुविधा टारि रे, गुरु चरण कमल बलिहारी रे। भव सागर में नीर अपारा, डूब रहा नहीं मिले किनारा, पल में लिया उबारी रे, गुरु चरण कमल बलिहारि रे, मेरे मन की दुविधा टारि रे, गुरु चरण कमल बलिहारी रे।। काम क्रोध मद लोभ लुटेरे, जनम जनम के बैरी मेरे, सबको दीन्हा मारी रे, गुरु चरण कमल बलिहारि रे, मेरे मन की दुविधा टारि रे, गुरु चरण कमल बलिहारी रे।। भेद भाव सब दूर कराया, पूरण ब्रम्ह एक दर्शाया, घट घट ज्योति निहारी रे, गुरु चरण कमल बलिहारि रे, मेरे मन की दुविधा टारि रे, गुरु चरण कमल बलिहारी रे।। जोग जुगत गुरुदेव बतलाई, ब्रम्हानंद शांति मन आई, मानुष देह सुधारी रे, गुरु चरण कमल बलिहारि रे, मेरे मन की दुविधा टारि रे, गुरु चरण कमल बलिहारी रे।। गुरु चरण कमल बलिहारी रे, मेरे मन की दुविधा टारि रे, गुरु चरण कमल बलिहारी रे।। शिक्षक दिवस सितम्बर को है। उपहार के रूप में आप का अपने शिक्षक का सम्मान करना उचित है। अक्सर सबसे अच्छा उपहार एक हस्त लिखित धन्यवाद नोट होता है , यदि आप चाहें तो थोड़ा पैसा खर्च करना भी ठीक है। आप भी अपने शिक्षक को उपहार भेज सकते हैं। Buy Gift for you...

फाग भजन चौताल : वृज में अति धूम मचायौ

वृज में अति धूम मचायौ बृज में अति धीम मचायो, नन्दजी के लाला || साजि श्रृंगार राधिका ठाढ़ी, नख सिंक सुन्दर भाला । और सखि सब साजि चली संग । जुटि गई जहवां सब ग्वाला, नन्दजी के लाला || जितने बाजा संग लिये हैं, बाजत एकै ताला । हो हो करि होरी सब गावत । लौ लासी लिये वृजबाला, नन्दजी के लाला || तकि तकि घात सखियन पर मारत, भरि भरि रंग जोपाला । लै गुलाल हरि को सखि मारत । मानो हरि हो गयें मतवाला, नन्दजी के लाला || कंचन के पिचके छूटे ज्यों, बरसत मेघ कराला । ग्राम नवतार भीजी तेहि औसर । सब लखि सुर होत निहाला, नन्दजी के लाला || उलारा खेलहि कृष्ण मुरार, विन्दावन होरी ।। करतल ताल सभी कर शोभित, हरि नाचे संग नर-नार, विन्दावन.... गहि बहियां कोई अधर मिलावत, गल चूमत बारम्बार, विन्दावन... श्याम सखे ब्रज की सब नारी, दी तन की दसा बिसार, विन्दावन होरी ॥ (ठाकुर भीम सिंह)

फाग भजन : वर आऐ हैं गौरा तुम्हारे

 वर आऐ हैं गौरा तुम्हारे वर आऐ हैं गौरा तुम्हारे, बड़े सैलानी। भूत पिचास संग लै आये, बोलत बम बम बानी । जेहि देखो तेहि अशुभ भेष धरे ।। तेहि संग न एक निशानौ, बड़े सैलानी । आपु सवार बैल है पर जटा गंग अरू झानी। चन्द्र भाल गले मुंहमाल लसे ।। दोउ कर नागिन लिपटानी, बड़े सैलानी । भाँग धतूर चर लै फाँकत, महिमा जात न जानी। मात पिता पयर लोग सोच वश ।। सुनि गौरी हृदय हरशानी, बड़े सैलानी। गई बरात द्वार के चारे, लखि सब नारी परानी । द्विज भागीरथ शम्भु शम्भु भजु ।। भोला बाबा बड़े वरदानी, बड़े सैलानी। उलारा गिरिजापति खेलै होरी हो, गिरिजापति खेलै होरी हो। भसम अंग सिंर गंग बिराजे, जटा मुकुट लट फेरी हो। बाये अगं जग जन्नी भवानी, नाचै योगिनि घेरी हो। बाधंबर पीताम्बर ओढ़े, शेशनाग लपटोरी हो । चंद्रभाल सोहे कपाल पर, देखि चकित भइ गोरी हो ।। गिरिजापति खेलै होरी हो...... गिरजे सैन दियौ सखियन को, लै गुलाल रंग दौड़ी हो। देखि सरूप शीश भयो नीचे, महाँदेव कहँ हेरी हो । कानन वाके कुन्डल सोहे, हाथ त्रिशूल लियोरी हो। श्रृगीनाद बजाये रिझावत, गंगादास कर जोरी हो ।। गिरिजापति खेलै होरी हो.. (ठाकुर भीम सिंह)

फाग चौताल : वृज मुरली बजावत श्याम

वृज मुरली बजावत श्याम बृज मुरली बजावत श्याम रहा नही जाई ॥ लै लै नाम मुरलि में सब को, मिलो मिला दुनि लाई । सुनि बृजवनिता अपनी महल से । सब चली हैं सो लाज गँवाई, रहा नहीं जाई ।। शिरकी चुनरी कमर पहिरे हैं, कमरकी शिपै ओढ़ाई । अन्जन नैनन बीज लगावत । शिर सेंदुर लेत लगाई, रहा नहीं जाई ॥ कोउ धन रही पियावत आपन, कोउ रहि पलंग बिछाई कोउ जेवनार बनावत भीतर । कोउ बसन बिना उठी धाई, रहा नहीं जाई ॥ कोउ गरिआवन लागी मुरलि को, जिन हम को बौराई । घर में रहा नहीं जात महिपति । हरी की मुरली तो है सुखदाई, रहा नहीं जाई ॥ उलारा खेलहि कृष्ण मुरार, विन्दावन होरी ।। करतल ताल सभी कर शोभित, हरि नाचे संग नर-नार,  विन्दावन होरी गहि बहियां कोई अधर मिलावत, गल चूमत बारम्बार,  विन्दावन होरी श्याम सखे ब्रज की सब नारी, दी तन की दसा बिसार, विन्दावन होरी ॥ (ठाकुर भीम सिंह)

फाग भजन : आयें राम लछन दोउ भाई

आयें राम लछन दोउ भाई बीर अनेक शिव धनुष चढ़ाने को करें उपाई , उठा धनुष नहीं लौट चले सब सिर लटकाई ॥ कठिन कठोर धनुष शकर का || धनु छवत दून होई जाई, राजा जनक अगना । ताल ठोक कर उठा दशानन, सुर मुनि घबड़ाई, धनुआ न हीला तिल भर, राक्न रहा खिसिआई। राजा जनक मन सोच भयौ है ॥ दोउ कुवर खड़े मुसकाई, राजा जनक अगना । उठै राम तब सकल सभा के मन हरपाई गुर् अज्ञा सिर धार, धनुश को हाथ लगाई। देखत ही शर चाप चढायौ । धनु तोरि नौखंड बनाई, राजा जनक अगंना । टूट पिनाक शब्द भारी, रवि स्थ न ठहराई भूप सबै खिखिआये गये मन रोश बढ़ाई ॥ ठाकुर भिम हिये हुलसि हुलसि कहि ॥ सब सुर मुनि के मन भाई, राजा जनक अगंना ॥ उलारा धनु तोड़ दियो, रामचन्द भगवाना । भूप अनेक पधारे, सीता स्वयमबर में, खुद की करै बखाना, धनु छूते ही, लौठ चलै खिसियाना, हाये लौठ चलै खिसियाना, हाये लौठ चलै खिसियाना (2), धनु तोड़ दियो रामचन्द भगवाना । फिर रामचन्द मुस्काये, गुर अन्जा ले धनुष को हाथ लगाये, शिव धनुआ को तोड़ नौ खन्ड बनाये, सब बीरन का पल में मान गिराये। हाये पल में मान गिराये (2), धनु तोड़ दियो रामचन्द भगवाना । (ठाकुर भीम सिंह)