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फाग भजन : दुर्योधन का द्रोपती को भवन से लाने की कहना

लाबै हो कोउ पकरि द्रोपती लाबै जैसे तैसें दाव लगौ आजु ईश्वर को है गयौ नेहा । भरि लेउ आँखे वादिन के लजबन्ती कैसी बेहा ।।  सो०- कही अन्ध के अंध भवन में मोइ जेठु के बिरु बनायें हो। कोऊ० जब ही नाम लयौ दोपति को भीम सैनि तमके नैना। मंगाई लेउ दोपति कौ काम सभा में कछु हैना।। सो०- साथ बुरो भैया दुनियों में तासों आर-पार है जाबै हो। कोऊ०  मंगलवार पड़ी परिवा जानें अम्बर की पहनी साड़ी। चाहति बॉट पन्डवनि की तब द्रोव सुता घर में ठाड़ी। सो०- परौ नजरि दूशासन बिरही अब चलौ भवने में आबै हो। कोऊ०  बिना काल कोऊ मरत न देखौ बेशक विषिए ले खाइकें। काटे कोई दिना दुख के ताहि बूझि लेऊ भैया जाइकें ।। सो०- जो कछु बीति रही पन्डनि पर ना मुख से रामु कहाबै हो। कोऊ०. तैसे ही सौ और तैरो ही नौ या बेईमान अधरमी को। मैंनि भनेजी कहा पर नर कामी पुरुष कुकरमी को ।। सो०- करनी काल करम गति मिलि गई कहा कविता अजब बनावै हो। कोऊ०)

फाग गीत भजन : द्रोपती पर भगवान की कृपा

 बनवारी हो जब टेर सुनों बनवारी निरखे बैठि झरो का ते फिरि तिनि ते कहा अंधेरी है।  स्वांश-स्वांश में वासु करें भगवान बसें कहा देरी है।।  सो०- दौरि द्वारिका से सुधि लीनी तब बढी शीशते सारी हो  बनवारी हो जब टेर सुनों बनवारी पलक बन्द द्रोपति के है गए लागी डोरि गुसैयाँ ते।  चकित सभा जब चीर बढो एक तगा न उधरौ बंयाँ ते ।। सो०- जाकी लाज विधाता राखै कहुँ होइ न ताकी ख्वारी हो  बनवारी हो जब टेर सुनों बनवारी खेचिर पटुढेर करै फिरि तौर ना शौचै अभिमानी।  पर वस भई थकी दोऊ बैयों मुख सेह नाहि कठै बानी।। सो०- खुद दुर्योधन की मति मारी जो नैननि रहौ निहारी हो  बनवारी हो जब टेर सुनों बनवारी दुश्मन मरै न दुश्मन कौसें कोंसें पड़ा कसैया के। होगी वहे जो प्रभू रचि राखा सिग की डोर कन्हैया के ।। सो०- सदाँ पछ्याँ ना पुरबैया भई अभिमानी की ख्वारी हो  बनवारी हो जब टेर सुनों बनवारी दुश्मन हारि गयौ दूशासन अपुते बठि गयौ धरनी। निज करनी कौ जगु फलु पावै पापी तरै न बैतरनी।। सो०- अजब द्वारिका कहाँ हथनापुर अब भई न नारिं उधारी हो।  बनवारी हो जब टेर सुनों बनवारी

होली फाग : भए तो शान्तनु नृप मगन भऐ है।

महाभारत आदि पर्व : होली फाग गीत  टेक - भए तो शान्तनु नृप मगन भऐ है। १ -    सुरति  देखि गंगा की मन में नूप हरसाते है।         शील सुभाव सेवा सदगुण से अति आन्द मनाते है।  तो० - रहते साथ साथ गंगा के अब का दिन बीत गए हैं।  २- जैसे ही पुत्र होय गंगा के गंगा ने जल में बनाए है।      इसी तरह गंगा जी ने सात पुत्र उपजाऐ है ।  तो०- ऐसो हाल देखो राजाने अब मन में सोच छऐ है।  ३- पुत्र आठमा भयो गंगा के गंगा ने खुशी मनाई है।      ले के पुत्र चलि दई गंगा राजे उदाशी छाई है। तो०- शिबई पुत्र मारि दऐ तुम्हें अब क्रोधित भूप कहें ।।  ४- गंगा ने कहो पुत्र लेऊ राजा तुहें छोड़ि हम जाय रही।        शर्ति हमारी पूरी न कीनी तुम्हें पुत्र सीपय रही  तो०- आठवा पुत्र देवब्रत नामों अब मुकट ने गाए कहें है ।