लाबै हो कोउ पकरि द्रोपती लाबै जैसे तैसें दाव लगौ आजु ईश्वर को है गयौ नेहा । भरि लेउ आँखे वादिन के लजबन्ती कैसी बेहा ।। सो०- कही अन्ध के अंध भवन में मोइ जेठु के बिरु बनायें हो। कोऊ० जब ही नाम लयौ दोपति को भीम सैनि तमके नैना। मंगाई लेउ दोपति कौ काम सभा में कछु हैना।। सो०- साथ बुरो भैया दुनियों में तासों आर-पार है जाबै हो। कोऊ० मंगलवार पड़ी परिवा जानें अम्बर की पहनी साड़ी। चाहति बॉट पन्डवनि की तब द्रोव सुता घर में ठाड़ी। सो०- परौ नजरि दूशासन बिरही अब चलौ भवने में आबै हो। कोऊ० बिना काल कोऊ मरत न देखौ बेशक विषिए ले खाइकें। काटे कोई दिना दुख के ताहि बूझि लेऊ भैया जाइकें ।। सो०- जो कछु बीति रही पन्डनि पर ना मुख से रामु कहाबै हो। कोऊ०. तैसे ही सौ और तैरो ही नौ या बेईमान अधरमी को। मैंनि भनेजी कहा पर नर कामी पुरुष कुकरमी को ।। सो०- करनी काल करम गति मिलि गई कहा कविता अजब बनावै हो। कोऊ०)
भदावर के लोकगीतों में चंबल की माटी की सौंधी-सौंधी गंध महकती है। जन मानस ने इन गीतों को गाते-गाते विविध रूप प्रदान किए हैं। लाखों कंठों ने गा-गा कर और लाखों लोगों ने मुग्ध होकर सुन-सुन कर इन गीतों को परम शक्तिशाली और हृदयस्पर्शी बना दिया है। लोकगीतों में धरती गाती है, पर्वत गाते हैं, नदियां गाती हैं, फसलें गाती हैं होली के भजन लिरिक्स, होली के रसिया लिरिक्स, होली गीत लिरिक्स इन हिंदी, होली लोक गीत इन हिंदी लिरिक्स, होली गीत लिरिक्स, लिरिक्स होली के भजन, लिरिक्स होली भजन, होली भजन डायरी,