अब तौ रामध्वजा फहरानी॥ चमकै ढाल फरहरी तेगा, गर्द लागि असमानी । लक्ष्मण बीर बालि सुत अंगद, हनोमान अगवानी ॥९॥ कहै मदोदरि सुनु पिय रावण, त्रिभुवन पति से ठानी । जेहि समुद्र का मान करत रह्यो, तामें सिल उतरानी ॥२॥ आज पवन अँगना ना बुहारें, मेघ भरै ना पानी । लछिमी सरासर धान न कूटे, कहै मदोदरि रानी ॥३॥ विनती करो जाय पिय उनकी, चूक परी अति भारी । तुलसीदास भजौ भगवाने, करौ न अब अभिमानी ॥५॥ फाग भजन के लिखित बोल पाने के लिए हमारे चैनल को सब्सक्राइब कीजिये !
भदावर के लोकगीतों में चंबल की माटी की सौंधी-सौंधी गंध महकती है। जन मानस ने इन गीतों को गाते-गाते विविध रूप प्रदान किए हैं। लाखों कंठों ने गा-गा कर और लाखों लोगों ने मुग्ध होकर सुन-सुन कर इन गीतों को परम शक्तिशाली और हृदयस्पर्शी बना दिया है। लोकगीतों में धरती गाती है, पर्वत गाते हैं, नदियां गाती हैं, फसलें गाती हैं होली के भजन लिरिक्स, होली के रसिया लिरिक्स, होली गीत लिरिक्स इन हिंदी, होली लोक गीत इन हिंदी लिरिक्स, होली गीत लिरिक्स, लिरिक्स होली के भजन, लिरिक्स होली भजन, होली भजन डायरी,