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Hori Faag Bhajan : ताला हो तू खोलि हृदय का ताला

टेक  -  ताला हो तू खोल हृदय का ताला शंकर प्रिया शैल की पुत्री सिंह है तेरा मतवाला। सौतन त्यागि मिली शंकर को सुन्दर रूप है विशाला।  अग्नि समान रूप है तेरो, गर्जत है जैसे काला। हाँक सुनत भसम होय निशचर, निकसे मुख से ज्वाला। शक्ति तुही विधात्री तू है, इन्द्रा बनकर जगपाला। चण्डी तुही, तुही महाकाली, बने काल को है काला। तेरो तेज अपार भगवती, सहि न सकत है दगपाला। डरपैं देव तेज तेरे सो, डरे शेष फन वाला। खाडौ हाथ लयो जब तैने, भूमि तलातल जल हाला।  घसकी धरणि तेज तेरे सो, रूप भयंकर विकराला। भूत प्रेत बैताल संग में,  भैरव है तेरा लाला। चौसठ योगिनी संग चले तेरे, पी पी मद का प्याला। डाले तोड़ बहत्तर कोठा, तोड़ देत बज्जर ताला। लौह के तबा फोड़ कर निकसी, ज्योति प्रकाश जरत लाला। दे दे ज्ञान बुद्धि होइ निर्मल, करिदे प्रगट उजियाला। 'प्रभु दयालु' चरण के सेवक, गंगा को ज्यों नाला। लेखक श्री प्रभु दयाल जी मिश्रा, ग्राम सिधावली, बाह आगरा