बृजमें खेलत फाग मुरारी ॥ ग्वाल बाल लीन्हे रँग भीने, वेणु बजावत न्यारी। आनत ताल मृदंग झाँझ डफ, नाचत दे दे तारी ॥१॥ करि शृंगार सकल बनि आई, घरघरसे बज नारी । सैन दियौ घनश्याम सखनको, पकरौ गोप-कुमारी ॥२॥ रंग-गुलाल बाल लै धाये, बनितन सब रँग डारी । झपटि-झपट पट पकरि सखा सब देत फागकी गारी ॥३॥ कोऊ कहै हार मेरो टूटो. कोड कहै चूनर फारी। हरिबिलास यह फाग अनोखी, लाल हरे हैं सारी ॥४॥
भदावर के लोकगीतों में चंबल की माटी की सौंधी-सौंधी गंध महकती है। जन मानस ने इन गीतों को गाते-गाते विविध रूप प्रदान किए हैं। लाखों कंठों ने गा-गा कर और लाखों लोगों ने मुग्ध होकर सुन-सुन कर इन गीतों को परम शक्तिशाली और हृदयस्पर्शी बना दिया है। लोकगीतों में धरती गाती है, पर्वत गाते हैं, नदियां गाती हैं, फसलें गाती हैं होली के भजन लिरिक्स, होली के रसिया लिरिक्स, होली गीत लिरिक्स इन हिंदी, होली लोक गीत इन हिंदी लिरिक्स, होली गीत लिरिक्स, लिरिक्स होली के भजन, लिरिक्स होली भजन, होली भजन डायरी,