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बृजमें खेलत फाग मुरारी ॥

 बृजमें खेलत फाग मुरारी ॥ ग्वाल बाल लीन्हे रँग भीने, वेणु बजावत न्यारी। आनत ताल मृदंग झाँझ डफ, नाचत दे दे तारी ॥१॥ करि शृंगार सकल बनि आई, घरघरसे बज नारी । सैन दियौ घनश्याम सखनको, पकरौ गोप-कुमारी ॥२॥ रंग-गुलाल बाल लै धाये, बनितन सब रँग डारी । झपटि-झपट पट पकरि सखा सब देत फागकी गारी ॥३॥ कोऊ कहै हार मेरो टूटो. कोड कहै चूनर फारी। हरिबिलास यह फाग अनोखी, लाल हरे हैं सारी ॥४॥